Women Reservation in India
महिला आरक्षण विधेयक ने अपने 14 साल के लम्बे सफर में संसद में तमाम
बाधाओं और नाटकीय घटनाक्रमों की वजह से लटकने के बाद पहला विधायी चरण तो
पार कर लिया लेकिन लोकसभा और देश की आधी राज्य विधानसभाओं से मंजूरी
मिलने और प्रक्रियागत तमाम जटिलताओं के कारण विशेषज्ञों का मानना है कि
इसे अभी अमल में आने में काफी समय लग जायेगा।
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा कि अभी तो यह विधेयक
राज्यसभा में पास हुआ है। इसे अभी लोकसभा और देश की आधी राज्य विधानसभाओं
की मंजूरी लेनी होगी। इसके बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जायेगा।
उन्होंने कहा राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद भी इसे तब तक लागू नहीं किया
जा सकता जब तक इसकी प्रक्रियाओं को तय नहीं किया जाता। उन्होंने कहा अभी
इस विधेयक में 15 साल के लिए महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में 33
प्रतिशत आरक्षण और हर पांच साल के बाद सीटों में क्रमवार बदलाव का उल्लेख
है।
कश्यप ने कहा इसे लागू करने की प्रक्रिया तय करनी होगी। यह निर्धारित
करना होगा कि पहले पांच वर्षों के लिए किन-किन सीटों को एक तिहाई आरक्षण
के तहत आरक्षित किया जायेगा। लोकसभा के पूर्व महासचिव ने कहा कि इसे लागू
करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक वास्तव में
संविधान संशोधन है जिसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत किया
गया है लेकिन इस बात को ध्यान में रखने पर जोर दिया गया है कि इससे संसद
के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़े।
उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन की प्रक्रिया काफी जटिल है और महिला
आरक्षण विधेयक के संबंध में जो प्रक्रिया अपनायी गई है वह संसद के विशेष
बहुमत की पद्धति पर आधारित है। उन्होंने कहा राज्यसभा और लोकसभा से पास
होने के बाद इसे देश की आधी राज्य विधानसभाओं से मंजूरी प्राप्त करना
होगा। इसलिए अभी इस विधेयक को कई बाधाओं को पार करना है।
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