Monday, April 25, 2016

अपनी जड़ों की तरफ वापस हो बुंदेले !


Pankaj Chaturvedi
नीक यहां कारगर नहीं है. बुंदेलखंड को बचाने का एकमात्र तरीका अपनी जड़ो की ओर लौटना होगा.
बुंदेलखंड के सभी गांव, कस्बे, शहर की बसाहट का एक ही पैटर्न रहा है - चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड., पहाड. की तलहटी में दर्जनों छोटे-बडे. ताल-तलैया और उनके किनारों पर बस्ती. पहाड. के पार घने जंगल व उसके बीच से बहती बरसाती या छोटी नदियां. आजादी के बाद यहां के पहाड. बेहिसाब काटे गए, जंगलों का सफाया हुआ व पारंपरिक तालाबों को पाटने में किसी ने संकोच नहीं किया. पक्के घाटों वाले हरियाली से घिरे व विशाल तालाब बुंदेलखंड के हर गांव- कस्बे की सांस्कृतिक पहचान हुआ करते थे. ये तालाब भी इस तरह थे कि एक तालाब के पूरा भरने पर उससे निकला पानी अगले तालाब में अपने आप चला जाता था, यानी बारिश की एक-एक बूंद संरक्षित हो जाती थी. चाहे चरखारी को लें या छतरपुर को, सौ साल पहले वे वेनिस की तरह तालाबों के बीच बसे दिखते थे. अब उपेक्षा के शिकार शहरी तालाबों को कंक्रीट के जंगल निगल गए. रहे-बचे तालाब शहरों की गंदगी को ढोने वाले नाबदान बन गए.
                                                           

बुंदेलखंड की असली समस्या अल्प वर्षा नहीं है, वह तो यहां सदियों, पीढ़ियों से होता रहा है. पहले यहां के बाशिंदे कम पानी में जीवन जीना जानते थे. आधुनिकता की अंधी आंधी में पारंपरिक जल-प्रबंधन तंत्र नष्ट हो गए और उनकी जगह सूखा और सरकारी राहत जैसे शब्दों ने ले ली. अब सूखा भले ही जनता पर भारी पड.ता हो, लेकिन राहत का इंतजार सभी को होता है- अफसरों, नेताओं सभी को. यही विडंबना है कि राजनेता प्रकृति की इस नियति को नजरअंदाज करते हैं कि बुंदेलखंड सदियों से प्रत्येक पांच साल में दो बार सूखे का शिकार होता रहा है और इस क्षेत्र के उद्धार के लिए किसी तदर्थ पैकेज की नहीं बल्कि वहां के संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दरकार है. इलाके में पहाड. कटने से रोकना, पारंपरिक बिरादरी के पेड.ों वाले जंगलों को सहेजना, पानी की बर्बादी को रोकना, लोगों को पलायन के लिए मजबूर होने से बचाना और कम पानी वाली फसलों को बढ.ावा देना; महज ये पांच उपचार बुंदेलखंड की तकदीर बदल सकते हैं. यदि बुंदेलखंड के बारे में ईमानदारी से काम करना है तो सबसे पहले यहां के तालाबों का संरक्षण, उनसे अतिक्रमण हटाना, तालाब को सरकार के बनिस्बत समाज की संपत्ति घोषित करना जरूरी है. इसके लिए ग्रामीण स्तर पर तकनीकी समझ वाले लोगों के साथ स्थायी संगठन बनाने होंगे. दूसरा, इलाके के पहाड़ों को अवैध खनन से बचाना, पहाड़ों से बह कर आने वाले पानी को तालाब तक निर्बाध पहुंचाने के लिए उसके रास्ते में आए अवरोधों, अतिक्रमणों को हटाना होगा. बुंदेलखंड में केन, केल, धसान जैसी गहरी नदियां हैं जो एक तो उथली हो गई हैं, दूसरा, उनका पानी सीधे यमुना जैसी नदियों में जा रहा है. इन नदियों पर छोटे-छोटे बांध बांध कर या नदियों को पारंपरिक तालाबों से जोड.कर पानी रोका जा सकता है.

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