ये कैसा धार्मिक उन्माद है ?
हर साल की तरह इस दफा भी माँ नव दुर्गा जी की पूजा का जस्न बुंदेलखंड में सर चड़कर बोल रहा है इस वर्ष तो पुरे १.५ करोड़ की क़ुरबानी माता ने भूखे बुंदेलखंड से ली है एक तरफ जहा यहाँ कई गरीबो को खाना नसीब नहीं होता वही धार्मिक उन्माद ही तो है जिसकी वजह से आम दिन बढ़ता हुआ माता की पूजा और मूर्ति विसर्जन जो यहाँ की नदियों में ही होता है और उससे कही अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है प्रदुसित होते जल को क्योकि प्लास्टर ऑफ़ पेरिस , कैमिकल से बनी हुई माता की मुर्तिया सधे ही बिना रिसाइकिल किये ही पानी में प्रवाहित कर दी जाति है , क्या आदमी ,क्या महिलाये , क्या बच्चे और किसोरिया सब ही इस उन्माद में डूब कर प्रयावार्ण को दुसित कर रहे है भले ही ये अनजाना अपराध क्यों ना हो ?
बुंदेलखंड में जारी पहाड़ो के खनन से होने वाले अगर ३०० मीटर गहरे पटल तक के छेदों में ये मुर्तिया दल दी जाये तो एक तरफ जहा मिटती से वे छेद भी भरेगे वही दूसरी तरफ माता को महफूज और वसुंधरा का पवित्र स्थान भी मिल सकेगा लेकिन इसके लिए जन सामूहिक त्याग व प्रकृति के लिए समर्पण की ज़रूरत है जो माता के विसर्जन में जाने वाले शराब और डीजे में थिरकते आज के नोजवानो में नहीं दिखाई देती आखिर ये कैसा धार्मिक उन्माद है ?
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