कुछ इस तरह हम अपनों से मारे गए है....
जाने क्यों नहीं लिखना चाह रहा तह पर लगा की मन की टीस अगर नहीं निकालूगा
तो ठीक नहीं होगा तो लिखने बैठा हू , क्यों हम हर पाच सालो में ये जनता के ठेकेदार बनाते है ?
क्या इनके ही बल पे इस समाज का विकास और सारी उमीदे जुडी है , क्या लोगो की बनाई इन
सरकारों ने अपनी जिम्मेवारी को निभाया है और अगर नहीं तो फिर क्यों ये बरसाती कुकुरमुत्तो
की जमात सारे भारत में फसल की तरह फैलती जा रही है , मित्रो एक हमारी ही दुहाई नहीं है ये ,
आज पूरा बुंदेलखंड , बिहार , पूर्वांचल इसी आग में जल रहा है क्योकि इन सरकारी ठेकेदारों ने
हमारे पानी को भी बेचने और बंधक साथ ही उसमे वो सब कुछ मिलाने की साज़िस की है जो
हर ज़र्रे को दीमक की तरह खाती चली जा रही है कुछ ये ही हालत है बांदा की केन नदी के और उनकी
सहायक नदियों के भी फिर चाहे वो चित्रकूट की मंदाकनी हो या फिर बेतवा आदि नदिया आज जरुरत
है इन पानी को गन्दा करने वाली हर उस कोशिस को रोकने की जो आदमी की ज़िन्दगी को केवल
सरकारी कुड़ेदानो का हिस्सा ही समझती है जाने न क्यों मै इस तरह पागल हो जाता हू
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