Tuesday, October 30, 2012

नदी बचाने की एक सार्थक पहल


भूमि विसर्जन रोकने के लिये दुर्गा कमेटियों के स्वयंभू अध्यक्षों और जातीय नेताओं की एक लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त जो नवरात्रि उत्सव के नाम पर वोटो की राजनीति अधिक और आस्था कम करती है, की पूरी मंडली शामिल थी, लेकिन प्रशासनिक मदद के चलते उनकी यह कोशिश सफल नहीं हो पायी...
आशीष सागर
''मेरे बीते हुये कल का तमाशा न बना, मेरे आने वाले हालात को बेहतर कर दो.
मै बहती रहूं अविरल इतना सा निवेदन है, नदी से मुझको सागर कर दो..’'
सर्वाधिक सूखे और जल संकट से जूझते बुन्देलखंड समेत पूरे भारत में शरद ऋतु की शुरुआत में धार्मिक परंपरानुसार मां दुर्गा पूजा की जाती है. इसकी समाप्ति पर नदियों में मूर्ति विसर्जित करने की परंपरा है. पहले से ही सूखे की मार झेलते बुंदेलखंड के लिए दुर्गा पूजा में मूर्ति विर्सजन के बाद नदियों की हालत पहले से बदतर हो जाती थी, जिससे नदियां तो प्रदूषित होती ही हैं, जल संकट भी और ज्यादा गहरा जाता. मगर इस बार बुंदेलखंड के जनपद बांदा में पिछले तीन दशक से चली होने वाली दुर्गा पूजा में नदियों में प्रवाहित की जाने वाली मूर्ति विसर्जन परंपरा से इतर कुछ अलग हुआ.
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मूर्तियों के भू-विसर्जन के लिए गड्ढा खोदते स्वयंसेवी
पिछले दो सालों से मूर्ति विसर्जन के बाद स्वयंसेवी संगठन प्रवास सोसायटी अपने कुछ स्वयंसेवियों के साथ नदी तट पर जा स्वच्छता अभियान चलाती है, मगर मूर्ति विसर्जन की संख्या को देखते हुए यह काम ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित होता. इसी को देखते हुए कुछ अलग करने की ठान चुके स्वयंसेवियों ने इस बार रूढिवादी परंपरा को बदलने के तहत मूर्तियों का जल में विसर्जन के बजाय नदी तट पर ही भूमि विसर्जन की दिशा में पहल की.
इसके तहत बांदा के नगरपालिका अध्यक्ष विनोद जैन को एक ज्ञापन सौंपा गया और नगर में स्थापित की गयी दुर्गा प्रतिमाओं को नदी तट पर ही भूमि विसर्जन करने मांग रखी. जिलाधिकारी ने ज्ञापन पर मौखिक सहमति जताते हुये जिला प्रशासन के समक्ष भूमि विसर्जन के लिये पक्ष रखने की बात कहकर मुद्दे को जिलाधिकारी के पाले में डाल दिया.
भूमि विसर्जन के लिये प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था करने की मांग को लेकर जिलाधिकारी को आठ सूत्रीय ज्ञापन दिया गया, मगर तीन दशक से चली आ रही परंपरा को बदलने की यह पहल केन्द्रीय कमेटी दुर्गा महोत्सव और कुछ जातीय नेताओं को हजम नहीं हुयी इसलिए उन्होंने दिशाहीन युवाओं और कथित बेलन गैंग की मुखिया पुष्पा गोस्वामी को आगे कर इस मुहिम पर विराम लगाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया.
चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन के नवरात्रि पर्व में लगने वाली मूर्तियों की गणना आंकडों में की जाये तो यह संख्या करीब 2000 के आसपास होगी. धार्मिक परंपरानुसार इस साल सिर्फ चित्रकूट में ही मंदाकिनी को प्रदूषित करने के लिये नौ थानों के अंतर्गत नदी के 17 घाटों में 466 मूर्तियां विसर्जित की जानी थी. बांदा में ही 380 मूर्तियां एकमात्र जीवनदायिनी नदी केन के तट पर प्रवाहित की जानी थी.
मूर्तियों के भूमि विर्सजन की पहल के विरोध में केन्द्रीय कमेटी ने बैठक बुलाकर खाप पंचायतों की तर्ज पर बांदा जिले के सभी दुर्गा पंडालों के लिये जल विसर्जन का फतवा जारी कर दिया. इस मुहिम का साथ दे रहे एक दैनिक समाचार पत्र को भी निशाना बनाया गया.
भूमि विसर्जन के विरोधियों का साथ देते हुए एक स्थानीय दैनिक ने इस अभियान को तोड़ने के लिये भूमि विसर्जन को भू-दफन लिखकर धार्मिक जेहाद फैलाने की भी कोशिश की. आरोप लगाये गये कि इस मुहिम के पीछे पर्यावरण मंत्रालय से एक करोड़ चालीस लाख रुपये पानी के नाम पर हथियाने का षडयंत्र छिपा है.
बुदेलखंड जैसे सूखे क्षेत्र के लिये नदियों की क्या अहमियत है, इसका अंदाजा गर्मियों में लगाया जा सकता है जब पानी लूटने की घटनायें और पानी के नाम पर कत्लेआम रोजमर्रा की घटनायें बनकर रह जाते है. बुन्देललखंड में तो पानी पर एक कहावत भी है 'गगरी न फूटे, चाहे खसम मर जाये.'
पर्यावरणविद और समाजसेवी डॉ. भारतेन्दू प्रसाद कहते हैं, 'चार सौ मूर्तियों के जल विसर्जन से लगभग 200 टन अपशिष्ट कचरा नदियों मेंचला जाता है. प्लास्टर आफ पेरिस से बनायी जाने वाली मूर्तियों में खतरनाक केमिकलयुक्त रंग का इस्तेमाल किये जाने के कारण जल विसर्जन के बाद इसके प्रदूषण से हजारों मछलियां मौत के शिकंजे में होती है. श्रंगार का सामान, कांच की चूडि़यां, लकडी का ढांचा नदी की धारा को रोकने का काम करता है.'
मूर्ति विसर्जन के दिन तिंदवारी, जसपुरा, कमासिन, तिंदवारा, अतर्रा व ओरन की 100 मूर्तिया केन में प्रवाहित नहीं की गयी. इन सबका भूमि विसर्जन नदी किनारे रेत में गडढा खोदकर किया गया. हालांकि भूमि विसर्जन रोकने के लिये दुर्गा कमेटियों के स्वयंभू अध्यक्षों और जातीय नेताओं की एक लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त जो नवरात्रि उत्सव के नाम पर वोटो की राजनीति अधिक और आस्था कम करती है. की पूरी मंडली शामिल थी. बेलन गैंग की मुखिया पुष्पा गोस्वामी और प्रशांत समुद्रे तो इसके लिए जूता पहनकर गड्ढों में कूद पडे, लेकिन प्रशासनिक मदद के चलते उनकी यह कोशिश सफल नहीं हो पायी.
इस पहल को नाकाम करने की कोशिश भूमि विसर्जन के बाद भी की गयी. दुष्प्रचार किया गया कि प्रवास और मां अम्बे नवयुवक समाज ने दुर्गा की मूर्ति को चप्पलों से मार कर गडढे में दफन किया है. मूर्तियों का भू-विसर्जन रोकने की चाहे तथाकथित धार्मिक आलंबरदारों ने चाहे कितनी कोशिश की, मगर बुन्देलखंड की यह पहल नदियों को बचाने की अनूठी मिसाल के तौर पर जानी जायेगी. अगर नदियों को वास्तव में जिंदगी के लिये बचाना है तो इस पहल को दूसरे जिलों में भी अपनाये जाने की आवश्यकता है.
http://www.janjwar.com/society/initiative/3303-nadi-bachane-kee-ek-sarthak-pahal-bundelkhand-banda-janjwar

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